Stories Of Singhasan Battisi

  • Autor: Vários
  • Narrador: Vários
  • Editor: Podcast
  • Duración: 3:23:27
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Sinopsis

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Episodios

  • सिंहासन बत्तीसी: ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचनी : Trilochani

    12/05/2018 Duración: 06min

    त्रिलोचनी ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचनी जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य बहुत बड़े प्रजापालक थे। उन्हें हमेंशा अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की ही चिन्ता सताती रहती थी। एक बार उन्होंने एक महायज्ञ करने की ठानी। असंख्य राजा-महाराजाओं, पण्डितों और ॠषियों को आमन्त्रित किया। यहाँ तक कि देवताओं को भी उन्होंने नहीं छोड़ा। पवन देवता को उन्होंने खुद निमन्त्रण देने का मन बनाया तथा समुद्र देवता को आमन्त्रित करने का काम एक योग्य ब्राह्मण को सौंपा। दोनों अपने काम से विदा हुए। जब विक्रम वन में पहुँचे तो उन्होंने तय करना शुरु किया ताकि पवन देव का पता-ठिकाना ज्ञात हो। योग-साधना से पता चला कि पवन देव आजकल सुमेरु पर्वत पर वास करते हैं। उन्होंने सोचा अगर सुमेरु पर्वत पर पवन देवता का आह्मवान किया जाए तो उनके दर्शन हो सकते है। उन्होंने दोनों बेतालों का स्मरण किया तो वे उपस्थित हो गए। उन्होंने उन्हें अपना उद्देश्य बताया। बेतालों ने उन्हें आनन-फानन में सुमेरु पर्वत की चोटी पर पहुँचा दिया। चोटी पर इतना तेज हवा थी कि पाँव जमाना मुश्किल था।  बड़े-बड़े वृक्ष और चट्टान अपनी जगह से उड़कर दूर चले जा रहे थे। मगर विक्रम तनिक भी विचलित न

  • सिंहासन बत्तीसी: दसवीं पुतली प्रभावती : Prabhavati

    11/05/2018 Duración: 06min

    प्रभावती दसवीं पुतली प्रभावती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिकों की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए। उन्होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उन्हें नज़र नहीं आए। उसी समय उन्होंने देखा कि एक सुदर्शन युवक एक पेड़ पर चढ़ा और एक शाखा से उसने एक रस्सी बाँधी। रस्सी में फंदा बना था उस फन्दे में अपना सर डालकर झूल गया। विक्रम समझ गए कि युवक आत्महत्या कर रहा है। उन्होंने युवक को नीचे से सहारा देकर फंदा उसके गले से निकाला तथा उसे डाँटा कि आत्महत्या न सिर्फ पाप और कायरता है, बल्कि अपराध भी है। इस अपराध के लिए राजा होने के नाते वे उसे दण्डित भी कर सकते हैं। युवक उनकी रोबीली आवाज़ तथा वेशभूषा से ही समझ गया कि वे राजा है, इसलिए भयभीत हो गया।  राजा ने उसकी गर्दन सहलाते हुए कहा कि वह एक स्वस्थ और बलशाली युवक है फिर जीवन से निराश क्यों हो गया। अपनी मेहनत के बल पर वह आजीविका की तलाश कर सकता है। उस युवक ने उन्हें बताया कि उसकी निराशा का कारण जीविकोपार्जन नहीं है और वह विपन्नता से निराश होकर आत्महत्या का प्रयास नहीं कर रहा था। राजा ने जानना चाहा कि कौन सी ऐसी विवशता

  • सिंहासन बत्तीसी: नवीं पुतली मधुमालती : Madhumalti

    10/05/2018 Duración: 05min

    मधुमालती नवीं पुतली मधुमालती ने जो कथा सुनाई उससे विक्रमादित्य की प्रजा के हित में प्राणोत्सर्ग करने की भावना झलकती है। कथा इस प्रकार है- एक बार राजा विक्रमादित्य ने राज्य और प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। कई दिनों तक यज्ञ चलता रहा। एक दिन राजा मंत्र-पाठ कर रहे, तभी एक ॠषि वहाँ पधारे। राजा ने उन्हें देखा, पर यज्ञ छोड़कर उठना असम्भव था। उन्होंने मन ही मन ॠषि का अभिवादन किया तथा उन्हें प्रणाम किया। ॠषि ने भी राज्य का अभिप्राय समझकर उन्हें आशीर्वाद दिया। जब राजा यज्ञ से उठे, तो उन्होंने ॠषि से आने का प्रयोजन पूछा। राजा को मालूम था कि नगर से बाहर कुछ ही दूर पर वन में ॠषि एक गुरुकुल चलाते हैं जहाँ बच्चे विद्या प्राप्त करने जाते हैं।  ॠषि ने जवाब दिया कि यज्ञ के पुनीत अवसर पर वे राजा को कोई असुविधा नहीं देते, अगर आठ से बारह साल तक के छ: बच्चों के जीवन का प्रश्न नहीं होता। राजा ने उनसे सब कुछ विस्तार से बताने को कहा। इस पर ॠषि ने बताया कि कुछ बच्चे आश्रम के लिए सूखी लकड़ियाँ बीनने वन में इधर-उधर घूम रहे थे। तभी दो राक्षस आए और उन्हें पकड़कर ऊँची पहाड़ी पर ले गए। ॠषि को जब वे उपस्थित नहीं मिल

  • सिंहासन बत्तीसी: आठवीं पुतली पुष्पवती : Pushpvati

    09/05/2018 Duración: 06min

    पुष्पवती आठवीं पुतली पुष्पवती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत कला-पारखी थे। उन्हें श्रेष्ठ कलाकृतियों से अपने महल को सजाने का शौक था। वे कलाकृतियों का मूल्य आँककर बेचनेवाले को मुँह माँगा दाम देते थे। एक दिन वे अपने दरबारियों के बीच बैठे थे कि किसी ने खबर दी कि एक आदमी काठ का घोड़ा बेचना चाहता है। राजा ने देखना चाहा कि उस काठ के घोड़े की विशेषता क्या है। नौकर के साथ वह आदमी दरबार में आया। अपने साथ वह ऐसा काठ का घोड़े लाया जिसकी कारीगरी देखते बनती थी। एकदम जीवित मालूम पड़ता था। बहुत गौर से देखने पर ही पता चलता था कि लकड़ी का है। विक्रम ने उस आदमी से घोड़े की विशेषताओं के बारे में पूछा। उस आदमी ने जवाब दिया कि वह घोड़ा अति तीव्र गति से जल, थल और आकाश- तीनों में विचरण कर सकता है।  उसके दाम के बारे में पूछने पर उसने बताया कि यह उसकी जीवन भर की मेहनत का फल है, इसलिए वह एक लाख स्वर्णमुद्राओं से कम में उसे नहीं बेचेगा। राजा को उसकी बात जँच गई और एक लाख स्वर्ण-मुद्राएँ देकर उन्होंने वह घोड़ा खरीद लिया। फिर वह आदमी खुले मैदान में आकर घोड़े को उठाकर दिखाने लगा तथा उसके कल-पुजाç के बारे में सब कुछ बताने लगा। उसके

  • सिंहासन बत्तीसी: सातवीं पुतली कौमुदी : Kaumudi

    08/05/2018 Duración: 04min

    कौमुदी सातवीं पुतली कौमुदी ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य अपने शयन-कक्ष में सो रहे थे। अचानक उनकी नींद करुण-क्रन्दन सुनकर टूट गई। उन्होंने ध्यान लगाकर सुना तो रोने की आवाज नदी की तरफ से आ रही थी और कोई स्री रोए जा रही थी। विक्रम की समझ में नहीं आया कि कौन सा दुख उनके राज्य में किसी स्री को इतनी रात गए बिलख-बिलख कर रोने को विवश कर रहा है। उन्होंने तुरन्त राजपरिधान पहना और कमर में तलवार लटका कर आवाज़ की दिशा में चल पड़े। क्षिप्रा के तट पर आकर उन्हें पता चला कि वह आवाज़ नदी के दूसरे किनारे पर बसे जंगल से आ रही है। उन्होंने तुरन्त नदी में छलांग लगा दी तथा तैरकर दूसरे किनारे पर पहुँचे। फिर चलते-चलते उस जगह पहुँचे जहाँ से रोने की आवाज़ आ रही थी। उन्होंने देखा कि झाड़ियों में बैठी एक स्री रो रही है।  उन्होंने उस स्री से रोने का कारण पूछा। स्री ने कहा कि वह कई लोगों को अपनी व्यथा सुना चुकी है, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। राजा ने उसे विश्वास दिलाया कि वे उसकी मदद करने का हर संभव प्रयत्न करेंगे। तब स्री ने बताया कि वह एक चोर की पत्नी है और पकड़े जाने पर नगर कोतवाल ने उसे वृक्ष पर उलटा टँगवा दिया है। र

  • सिंहासन बत्तीसी: छठी पुतली रविभामा : Ravibhama

    07/05/2018 Duración: 05min

    रविभामा छठी पुतली रविभामा ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक दिन विक्रमादित्य नदी के तट पर बने हुए अपने महल से प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रहे थे। बरसात का महीना था, इसलिए नदी उफन रही थी और अत्यन्त तेज़ी से बह रही थी। इतने में उनकी नज़र एक पुरुष, एक स्री और एक बच्चे पर पड़ी। उनके वस्र तार-तार थे और चेहरे पीले। राजा देखते ही समझ गए ये बहुत ही निर्धन हैं। सहसा वे तीनों उस नदी में छलांग लगा गए। अगले ही पल प्राणों की रक्षा के लिए चिल्लाने लगे। विक्रम ने बिना एक पल गँवाए नदी में उनकी रक्षा के लिए छलांग लगा दी। अकेले तीनों को बचाना सम्भव नहीं था, इसलिए उन्होंने दोनों बेतालों का स्मरण किया। दोनों बेतालों ने स्री और बच्चे को तथा विक्रम ने उस पुरुष को डूबने से बचा लिया । तट पर पहुँचकर उन्होंने जानना चाहा वे आत्महत्या क्यों कर रहे थे। पुरुष ने बताया कि वह उन्हीं के राज्य का एक अत्यन्त निरधन ब्राह्मण है जो अपनी दरिद्रता से तंग आकर जान देना चाहता है। वह अपनी बीवी तथा बच्चे को भूख से मरता हुआ नहीं देख सकता और आत्महत्या के सिवा अपनी समस्या का कोई अन्त नहीं नज़र आता।  इस राज्य के लोग इतने आत्मनिर्भर है#े कि सारा काम खुद ही

  • सिंहासन बत्तीसी: पाँचवी पुतली लीलावती : Leelavati

    06/05/2018 Duración: 04min

    लीलावती पाँचवीं पुतली लीलावती ने भी राजा भोज को विक्रमादित्य के बारे में जो कुछ सुनाया उससे उनकी दानवीरता ही झलकती थी। कथा इस प्रकार थी-  हमेशा की तरह एक दिन विक्रमादित्य अपने दरबार में राजकाज निबटा रहे थे तभी एक ब्राह्मण दरबार में आकर उनसे मिला। उसने उन्हें बताया कि उनके राज्य की जनता खुशहाल हो जाएगी और उनकी भी कीर्ति चारों तरफ फैल जाएगी, अगर वे तुला लग्न में अपने लिए कोई महल बनवाएँ। विक्रम को उसकी बात जँच गई और उन्होंने एक बड़े ही भव्य महल का निर्माण करवाया। कारीगरों ने उसे राजा के निर्देश पर सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात और मणि-मोतियों से पूरी तरह सजा दिया। महल जब बनकर तैयार हुआ तो उसकी भव्यता देखते बनती थी। विक्रम अपने सगे-सम्बन्धियों तथा नौकर-चाकरों के साथ उसे देखने गए। उनके साथ वह ब्राह्मण भी था। विक्रम तो जो मंत्रमुग्ध हुए, वह ब्राह्मण मुँह खोले देखता ही रह गया। बिना सोचे उसके मुँह से निकला-"काश, इस महल का मालिक मैं होता!" विक्रमादित्य ने उसकी इच्छा जानते ही झट वह भव्य महल उसे दान में दे दिया। ब्राह्मण के तो मानो पाँव ही ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह भागता हुआ अपनी पत्नी को यह समाचार सुनाने पहुँचा। इधर ब्राह्

  • सिंहासन बत्तीसी: चौथी पुतली कामकंदला : Kamkandla

    05/05/2018 Duración: 04min

    कामकंदला चौथी पुतली कामकंदला की कथा से भी विक्रमादित्य की दानवीरता तथा त्याग की भावना का पता चलता है। वह इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को सम्बोधित कर रहे थे तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्मण उनसे मिलना चाहता है। विक्रमादित्य ने कहा कि ब्राह्मण को अन्दर लाया जाए। जब ब्राह्मण उनसे मिला तो विक्रम ने उसके आने का प्रयोजन पूछा। ब्राह्मण ने कहा कि वह किसी दान की इच्छा से नहीं आया है, बल्कि उन्हें कुछ बतलाने आया है। उसने बतलाया कि मानसरोवर में सूर्योदय होते ही एक खम्भा प्रकट होता है जो सूर्य का प्रकाश ज्यों-ज्यों फैलता है ऊपर उठता चला जाता है और जब सूर्य की गर्मी अपनी पराकाष्ठा पर होती है तो सूर्य को स्पर्श करता है। ज्यों-ज्यों सूर्य की गर्मी घटती है छोटा होता जाता है तथा सूर्यास्त होते ही जल में विलीन हो जाता है। विक्रम के मन में जिज्ञासा हुई कि ब्राह्मण का इससे अभिप्राय क्या है। ब्राह्मण उनकी जिज्ञासा को भाँप गया और उसने बतलाया कि भगवान इन्द्र का दूत बनकर वह आया है ताकि उनके आत्मविश्वास की रक्षा विक्रम कर सकें। उसने कहा कि सूर्य देवता को घमण्ड है कि समुद्र देवता को छोड़कर पूरे ब्रह्माण्ड में कोई भी

  • सिंहासन बत्तीसी: तीसरी पुतली चंद्रलेखा : Chandralekha

    04/05/2018 Duración: 05min

    चन्द्रकला तीसरी पुतली चन्द्रकला ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- एक बार पुरुषार्थ और भाग्य में इस बात पर ठन गई कि कौन बड़ा है। पुरुषार्थ कहता कि बगैर मेहनत के कुछ भी सम्भव नहीं है जबकि भाग्य का मानना था कि जिसको जो भी मिलता है भाग्य से मिलता है परिश्रम की कोई भूमिका नहीं होती है। उनके विवाद ने ऐसा उग्र रुप ग्रहण कर लिया कि दोनों को देवराज इन्द्र के पास जाना पड़ा। झगड़ा बहुत ही पेचीदा था इसलिए इन्द्र भी चकरा गए। पुरुषार्थ को वे नहीं मानते जिन्हें भाग्य से ही सब कुछ प्राप्त हो चुका था। दूसरी तरफ अगर भाग्य को बड़ा बताते तो पुरुषार्थ उनका उदाहरण प्रस्तुत करता जिन्होंने मेहनत से सब कुछ अर्जित किया था। असमंजस में पड़ गए और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचे। काफी सोचने के बाद उन्हें विक्रमादित्य की याद आई। उन्हें लगा सारे विश्व में इस झगड़े का समाधान सिर्फ वही कर सकते है।  उन्होंने पुरुषार्थ और भाग्य को विक्रमादित्य के पास जाने के लिए कहा। पुरुषार्थ और भाग्य मानव भेष में विक्रम के पास चल पड़े। विक्रम के पास आकर उन्होंने अपने झगड़े की बात रखी। विक्रमादित्य को भी तुरन्त कोई समाधान नहीं सूझा। उन्होंने दोनों से छ: महीने की मोहलत

  • सिंहासन बत्तीसी: दूसरी पुतली चित्रलेखा : Chitrlekha

    03/05/2018 Duración: 06min

     चित्रलेखा दूसरी पुतली चित्रलेखा की कथा इस प्रकार है- एक दिन राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते-खेलते एक ऊँचे पहाड़ पर आए। वहाँ उन्होंने देखा एक साधु तपस्या कर रहा है। साधु की तपस्या में विघ्न नहीं पड़े यह सोचकर वे उसे श्रद्धापूर्वक प्रणाम करके लौटने लगे। उनके मुड़ते ही साधु ने आवाज़ दी और उन्हें रुकने को कहा। विक्रमादित्य रुक गए और साधु ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें एक फल दिया। उसने कहा- "जो भी इस फल को खाएगा तेजस्वी और यशस्वी पुत्र प्राप्त करेगा।" फल प्राप्त कर जब वे लौट रहे थे, तो उनकी नज़र एक तेज़ी से दौड़ती महिला पर पड़ी। दौड़ते-दौड़ते एक कुँए के पास आई और छलांग लगाने को उद्यत हुई। विक्रम ने उसे थाम लिया और इस प्रकार आत्महत्या करने का कारण जानना चाहा। महिला ने बताया कि उसकी कई लड़कियाँ हैं पर पुत्र एक भी नहीं। चूँकि हर बार लड़की ही जनती है, इसलिए उसका पति उससे नाराज है और गाली-गलौज तथा मार-पीट करता है। वह इस दुर्दशा से तंग होकर आत्महत्या करने जा रही थी। राजा विक्रमादित्य ने साधु वाला फल उसे दे दिया तथा आश्वासन दिया कि अगर उसका पति फल खाएगा, तो इस बार उसे पुत्र ही होगा। कुछ दिन बीत गए। एक दिन एक ब्राह्मण विक्रम के पास आय

  • सिंहासन बत्तीसी: पहली पुतली रत्नमञ्जरी : Ratnmanjri

    02/05/2018 Duración: 03min

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  • सिंहासन बत्तीसी : क्यों, कहाँ, कैसे Sinhasan Battisi kyon, kya, kaise

    01/05/2018 Duración: 11min

    प्रजावत्सल, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी ३२ कथाओं का संग्रह है जो बेताल पंचविशाति की भांति लोकप्रिय हुआ। संभवत: यह संस्कृत की रचना है जो उत्तरी संस्करण में "सिंहासन द्वात्रींशिका" तथा "विक्रमचरित के नाम से दक्षिणी संस्करण में उपलब्ध है। पहले के संस्कर्ता एक मुनि कहे जाते हैं जिनका नाम क्षेभेन्द्र था। बंगाल में वररुचि के द्वारा प्रस्तुत संस्करण भी इसी के समरुप माना जाता है। इसका दक्षिणी रुप ज्यादा लोकप्रिय हुआ कि लोक भाषाओं में इसके अनुवाद होते रहे और पौराणिक कथाओं की तरह भारतीय समाज में मौखिक परम्परा के रुप में रच-बस गए। इन कथाओं की रचना "बेताल पंचविशति" या "बेताल पच्चीसी" के बाद हुई पर निश्चित रुप से इनके रचनाकाल के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। इतना लगभग तय है कि इनकी रचना धारा के राजा भोज के समय में नहीं हुई। चूंकि प्रत्येक कथा राजा भोज का उल्लेख करती है, अत: इसका रचना काल ११वीं शताब्दी के बाद होगा। इन कथाओं की भूमिका भी

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