Stories Of Singhasan Battisi

सिंहासन बत्तीसी : इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या : Kaushalya

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Sinopsis

कौशल्या इकत्तीसवीं पुतली जिसका नाम कौशल्या था, ने अपनी कथा इस प्रकार कही- राजा विक्रमादित्य वृद्ध हो गए थे तथा अपने योगबल से उन्होंने यह भी जान लिया कि उनका अन्त अब काफी निकट है। वे राज-काज और धर्म कार्य दोनों में अपने को लगाए रखते थे। उन्होंने वन में भी साधना के लिए एक आवास बना रखा था। एक दिन उसी आवास में एक रात उन्हें अलौकिक प्रकाश कहीं दूर से आता मालूम पड़ा। उन्होंने गौर से देखा तो पता चला कि सारा प्रकाश सामने वाली पहाड़ियों से आ रहा है। इस प्रकाश के बीच उन्हें एक दमकता हुआ सुन्दर भवन दिखाई पड़ा। उनके मन में भवन देखने की जिज्ञासा हुई और उन्होंने काली द्वारा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्मरण किया। उनके आदेश पर बेताल उन्हें पहाड़ी पर ले आए और उनसे बोले कि वे इसके आगे नहीं जा सकते। कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि उस भवन के चारों ओर एक योगी ने तंत्र का घेरा डाल रखा है तथा उस भवन में उसका निवास है। उन घेरों के भीतर वही प्रवेश कर सकता है जिसका पुण्य उस योगी से अधिक हो। विक्रम ने सच जानकर भवन की ओर कदम बढ़ा दिया । वे देखना चाहते थे कि उनका पुण्य उस योगी से अधिक है या नहीं। चलते-चलते वे भवन के प्रवेश द्वार तक आ गए। एकाए