Stories Of Premchand

जयशंकर प्रसाद की लिखी कहानी अनबोला, Anbola - Story Written By Jaishankar Prasad

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Sinopsis

उसके जाल में सीपियाँ उलझ गयी थीं। जग्गैया से उसने कहा-‘‘इसे फैलाती हूँ, तू सुलझा दे।’’ जग्गैया ने कहा-‘‘मैं क्या तेरा नौकर हूँ?’’ कामैया ने तिनककर अपने खेलने का छोटा-सा जाल और भी बटोर लिया। समुद्र-तट के छोटे-से होटल के पास की गली से अपनी झोपड़ी की ओर चली गयी। जग्गैया उस अनखाने का सुख लेता-सा गुनगुनाकर गाता हुआ, अपनी खजूर की टोपी और भी तिरछी करके, सन्ध्या की शीतल बालुका को पैरों से उछालने लगा। -- -- दूसरे दिन, जब समुद्र में स्नान करने के लिए यात्री लोग आ गये थे; सिन्दूर-पिण्ड-सा सूर्य समुद्र के नील जल में स्नान कर प्राची के आकाश में ऊपर उठ रहा था; तब कामैया अपने पिता के साथ धीवरों के झुण्ड में खड़ी थी; उसके पिता की नावें समुद्र की लहरों पर उछल रही थीं। महाजाल पड़ा था, उसे बहुत-से धीवर मिलकर खींच रहे थे। जग्गैया ने आकर कामैया की पीठ में उँगली गोद दी। कामैया कुछ खिसककर दूर जा खड़ी हुई। उसने जग्गैया की ओर देखा भी नहीं। जग्गैया को केवल माँ थी, वह कामैया के पिता के यहाँ लगी-लिपटी रहती, अपना पेट पालती थी। वह बेंत की दौरी लिये वहीं खड़ी थी। कामैया की मछलियाँ ले जाकर बाज़ार में बेचना उसी का काम था। जग्गैया नटखट