Stories Of Premchand

42: जयशंकर प्रसाद की लिखी कहानी बंजारा, Banjara - Story Written By Jaishankar Prasad

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Sinopsis

धीरे-धीरे रात खिसक चली, प्रभात के फूलों के तारे चू पडऩा चाहते थे। विन्ध्य की शैलमाला में गिरि-पथ पर एक झुण्ड बैलों का बोझ लादे आता था। साथ के बनजारे उनके गले की घण्टियों के मधुर स्वर में अपने ग्रामगीतों का आलाप मिला रहे थे। शरद ऋतु की ठण्ड से भरा हुआ पवन उस दीर्घ पथ पर किसी को खोजता हुआ दौड़ रहा था। वे बनजारे थे। उनका काम था सरगुजा तक के जंगलों में जाकर व्यापार की वस्तु क्रय-विक्रय करना। प्राय: बरसात छोड़कर वे आठ महीनें यही उद्यम करते। उस परिचित पथ में चलते हुए वे अपने परिचित गीतों को कितनी ही बार उन पहाड़ी चट्टानों से टकरा चुके थे। उन गीतों में आशा, उपालम्भ, वेदना और स्मृतियों की कचोट, ठेस और उदासी भरी रहती। सबसे पीछेवाले युवक ने अभी अपने आलाप को आकाश में फैलाया था; उसके गीत का अर्थ था- ''मैं बार-बार लाभ की आशा से लादने जाता हूँ; परन्तु है उस जंगल की हरियाली में अपने यौवन को छिपानेवाली कोलकुमारी, तुम्हारी वस्तु बड़ी महँगी है! मेरी सब पूँजी भी उसको क्रय करने के लिए पर्याप्त नहीं। पूँजी बढ़ाने के लिए व्यापार करता हूँ; एक दिन धनी होकर आऊँगा; परन्तु विश्वास है कि तब भी तुम्हारे सामने रंक ही रह जाऊँगा!'' आलाप