Stories Of Premchand

11: प्रेमचंद की कहानी "गृह दाह" Premchand Story "Grih Daah"

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Sinopsis

सौत का पुत्र विमाता की आँखों में क्यों इतना खटकता है इसका निर्णय आज तक किसी मनोभाव के पंडित ने नहीं किया। हम किस गिनती में हैं। देवप्रिया जब तक गर्भिणी न हुई वह सत्यप्रकाश से कभी-कभी बातें करती कहानियाँ सुनातीं किंतु गर्भिणी होते ही उसका व्यवहार कठोर हो गया और प्रसवकाल ज्यों-ज्यों निकट आता था उसकी कठोरता बढ़ती ही जाती थी। जिस दिन उसकी गोद में एक चाँद-से बच्चे का आगमन हुआ सत्यप्रकाश खूब उछला-कूदा और सौरगृह में दौड़ा हुआ बच्चे को देखने लगा। बच्चा देवप्रिया की गोद में सो रहा था। सत्यप्रकाश ने बड़ी उत्सुकता से बच्चे को विमाता की गोद से उठाना चाहा कि सहसा देवप्रिया ने सरोष स्वर में कहा-खबरदार इसे मत छूना नहीं तो कान पकड़ कर उखाड़ लूँगी ! बालक उल्टे पाँव लौट आया और कोठे की छत पर जा कर खूब रोया। कितना सुन्दर बच्चा है ! मैं उसे गोद में ले कर बैठता तो कैसा मजा आता ! मैं उसे गिराता थोड़े ही फिर इन्होंने क्यों मुझे झिड़क दिया भोला बालक क्या जानता था कि इस झिड़की का कारण माता की सावधानी नहीं कुछ और ही है। एक दिन शिशु सो रहा था। उसका नाम ज्ञानप्रकाश रखा गया था। देवप्रिया स्नानागार में थी। सत्यप्रकाश चुपके से आया और बच्च