Stories Of Premchand

7: प्रेमचंद की कहानी "मृत्यु के पीछे" Premchand Story "Mrityu Ke Peechhe"

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Sinopsis

लेकिन ईश्वरचंद्र को बहुत जल्द मालूम हो गया कि पत्र सम्पादन एक बहुत ही ईर्ष्यायुक्त कार्य है जो चित्त की समग्र वृत्तियों का अपहरण कर लेता है। उन्होंने इसे मनोरंजन का एक साधन और ख्यातिलाभ का एक यंत्र समझा था। उसके द्वारा जाति की कुछ सेवा करना चाहते थे। उससे द्रव्योपार्जन का विचार तक न किया था। लेकिन नौका में बैठ कर उन्हें अनुभव हुआ कि यात्र उतनी सुखद नहीं है जितनी समझी थी। लेखों के संशोधन परिवर्धन और परिवर्तन लेखकगण से पत्र-व्यवहार और चित्ताकर्षक विषयों की खोज और सहयोगियों से आगे बढ़ जाने की चिंता में उन्हें क़ानून का अध्ययन करने का अवकाश ही न मिलता था। सुबह को किताबें खोल कर बैठते कि 100 पृष्ठ समाप्त किये बिना कदापि न उठूँगा किन्तु ज्यों ही डाक का पुलिंदा आ जाता वे अधीर हो कर उस पर टूट पड़ते किताब खुली की खुली रह जाती थी। बार-बार संकल्प करते कि अब नियमित रूप से पुस्तकावलोकन करूँगा और एक निर्दिष्ट समय से अधिक सम्पादनकार्य में न लगाऊँगा। लेकिन पत्रिकाओं का बंडल सामने आते ही दिल काबू के बाहर हो जाता। पत्रों के नोक-झोंक पत्रिकाओं के तर्क-वितर्क आलोचना-प्रत्यालोचना कवियों के काव्यचमत्कार लेखकों का रचनाकौशल इत्यादि