Stories Of Premchand

18: प्रेमचंद की कहानी "स्मृति का पुजारी" Premchand Story "Smriti Ka Pujari"

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Sinopsis

देवीजी हिन्दू धर्म की अनुगामिनी थीं, आप इस्लामी सिद्धान्तों के कायल थे; मगर अब आप भी पक्के हिन्दू हैं, बल्कि यों कहिए कि आप मानवधर्मी हो गये हैं। एक दिन बोले, 'मेरी कसौटी तो है मानवता ! जिस धर्म में मानवता को प्रधानता दी गयी है, बस, उसी धर्म का मैं दास हूँ। कोई देवता हो या नबी या पैगम्बर, अगर वह मानवता के विरुद्ध कुछ कहता है, तो मेरा उसे दूर से सलाम है। इस्लाम का मैं इसलिए कायल था कि वह मनुष्यमात्र को एक समझता है, ऊँच-नीच का वहाँ कोई स्थान नहीं है; लेकिन अब मालूम हुआ कि यह समता और भाईपन व्यापक नहीं, केवल इस्लाम के दायरे तक परिमित है। दूसरे शब्दों में, अन्य धार्मों की भाँति यह भी गुटबन्द है और इसके सिद्धान्त केवल उस गुट या समूह को सबल और संगठित बनाने के लिए रचे गये हैं। और जब मैं देखता हूँ कि यहाँ भी जानवरों की कुरबानी शरीयत में दाखिल है और हरेक मुसलमान के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार भेड़, बकरी, गाय, या ऊँट की कुरबानी फर्ज बतायी गयी है, तो मुझे उसके अपौरुषेय होने में सन्देह होने लगता है। हिन्दुओं में भी एक सम्प्रदाय पशु-बलि को अपना धर्म समझता है। यहूदियों, ईसाइयों और अन्य मतों ने भी कुरबानी की बड़ी महिमा गायी